Research : फेफड़े के कैंसर से बचाएगा लकड़ी से तैयार बायोचार, इलाहाबाद विवि के वैज्ञानिकों ने शोध में किया दावा

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के पर्यावरण अध्ययन केंद्र के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा बायोचार तैयार किया है, जो टेनरियों से निकलने वाले गंदे पानी में मौजूद क्रोमियम को 95 फीसदी तक अलग कर सकता है। क्रोमियम को फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है।
Biochar prepared from wood will save from lung cancer, scientists of Allahabad University claim in research
Prayagraj News : wood biocher – फोटो : अमर उजाला।
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के पर्यावरण अध्ययन केंद्र के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा बायोचार तैयार किया है, जो टेनरियों से निकलने वाले गंदे पानी में मौजूद क्रोमियम को 95 फीसदी तक अलग कर सकता है। क्रोमियम को फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है। वर्तमान तकनीक के जरिये टेनरियों में उपलब्ध क्रोमियम को केवल 50 फीसदी तक ही अलग किया जा सकता है, जो सेहत के लिए घातक है।
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पर्यावरण अध्ययन केंद्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुरनजीत प्रसाद के निर्देशन में शोधार्थी कविता सिंह एवं उनकी टीम के अन्य सदस्यों का यह शोध जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय ज्नल बायोमास कनवर्जन एंड बायो रिफाइनरी ने प्रकाशित किया है। शोध में बताया गया है कि पानी में क्रोमियम की मात्रा 0.05 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) होनी चाहिए, जबकि कानपुर की एक टेनरी में यह मात्रा 45 पीपीएम मिली है।

टेनरियों से निकलने वाले गंदे पानी को शोधित किए जाने के बावजूद मौजूदा तकनीकी से 50 फीसदी तक ही क्रोमियम को पानी से अलग किया जा सकता है। टेनरियों के पानी को शोधित करने के बाद नदियों में छोड़ा जाता है। ऐसे में नदियों के पानी का उपयोग करने वाले लोगों की सेहत के लिए यह घातक है। शोध के दौरान पानी में अन्य तत्वों की मौजूदगी का भी पता लगाया गया।

इसमें केमिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा 176 पीपीएम मिली, जो 250 होनी चाहिए, क्लोराइड 600 पीपीएम होना चाहिए। जबकि, जांच में दोगुने से अधिक 1100 पीपीएम पाया गया। अन्य तत्व तो उतने खतरनाक नहीं हैं, लेकिन क्रोमियम से फेफड़े का कैंसर, एग्जिमा एवं त्वचा संबंधी अन्य बीमारियों सहित अस्थमा का खतरा होता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी यह कमजोर बनाता है।

डॉ. सुरनजीत प्रसाद के अनुसार उनकी टीम ने जो बायोचार मैटीरियल (एडजॉरमेंट) तैयार किया है, वह टेनरियोंसे निकले वाले गंदे पानी से 95 फीसदी तक क्रोमियम को अलग सकता है। यह तकनीक काफी सस्ती और सुलभ है। अगर टेनरियों में इसका इस्तेमाल किया जाए, तो आधी लागत पर टेनरियों से निकलने वाले गंदे पानी को बेहतर तरीके से शोधित किया जा सकता है।

क्या है बायोचार, कैसे करता है काम

बायोचार एक प्रकार का चारकोल है, जो लकड़ी को बिना ऑक्सीजन के 500 डिग्री पर गर्म करके तैयार किया जाता है। टेनरी का गंदा पानी का बायोचार की सतह से स्पर्श होते ही 95 फीसदी क्रोमियम से अलग होकर सतह से चिपक जाता है और पानी में महज पांच फीसदी क्रोमियम ही रह

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